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परकायाप्रवेश की रहस्यमय किताब

 रहस्यों की दुनिया में आपका स्वागत है।यहाँ  आपको ऐसे ऐसे  रहष्यो के बारे में जानने को मिलेगा जिसको  आप ने  कभी सपने में  भी नहीं सोचा होगा। 





रहस्यमय लामा  जो कई बार परकायाप्रवेश  कर चुका है। जिसने अपनी तीसरी आंख खोल ली है.रहस्यमय लामा ने  एक अद्भुत किताब लिखी है. 

पर-काया प्रवेश से तात्पर्य किसी व्यक्ति की आत्मा द्वारा किसी दूसरे व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करने या कराने से है। नाथ संप्रदाय के प्रथम गुरु मुनिराज 'मछंदरनाथ' के पास विभिन्न शरीरों में प्रवेश करने और अपनी इच्छानुसार विचरण करने की शक्ति थी। उन्होंने एक बार एक मृत राजा के शरीर में प्रवेश किया और उसके भौतिक शरीर की रक्षा का दायित्व अपने शिष्य गोरखनाथ को सौंप दिया। महाभारत के शांति पर्व में सुलभा नामक विदुषी महिला ने अपने योग से राजा जनक के शरीर में प्रवेश किया और पर-काया प्रवेश की शक्ति का प्रदर्शन करते हुए विद्वानों के साथ शास्त्रार्थ करना शुरू कर दिया।
परकाया प्रवेश प्राण योग या मंत्र योग के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, जिसमें व्यक्ति के स्तर को ऊपर उठाना और अपने अंगों, प्राण और आत्मा को नियंत्रित करना शामिल है। इससे योगी अपने वातावरण को नियंत्रित और निर्देशित कर सकता है। योग्य गुरु के अधीन कुछ आसनों का अभ्यास करके, योगी अपनी आत्मा पर नियंत्रण प्राप्त करता है और सूक्ष्म भाग को छोड़कर अपने पूरे जीवन को एक विशिष्ट शरीर में डाल सकता है। इससे मृत शरीर में जान आ जाती है। प्राण विसर्जन के दौरान, एक संकेत दिया जाता है और प्राण बिना देरी किए अपने मूल शरीर में वापस आ जाता है। इससे हृदय की धड़कन, रक्त संचार और सूक्ष्म चेतना बनी रहती है। स्वामी पूर्णानंद, योगी ज्ञानानंद, स्वामी निर्मलदेव चैतन्य और योगीराज अरविंद सहित कई योगियों ने इस प्रक्रिया के माध्यम से सफलता प्राप्त की है।
परकाया प्रवेश के प्रकार ...

परकाया प्रवेश के दो मुख्य प्रकार होते हैं, जिनको अब इनको बता रहा हूँ...

१  पहले प्रकार का परकाया प्रवेश ...
इसमें योगी जीवित होते हुए ही, अपनी काया को त्याग कर के, कुछ ही सीमित समय के लिए, किसी और की काया मैं प्रवेश करता है।

ऐसा योगी किसी स्थूल देहि माता के गर्भ से जन्म लेता है, इसलिए वो जन्मा हुआ कहलाता है। इसलिए, उस योगी के स्थूल्न शरीर के जन्में
हुए लोक के इष्ट्विकोण से, ऐसे योगी का जन्म परकाया प्रवेश के मार्ग से माना ही नहीं जा सकता है।

और उस स्थूल दैहि माता के गर्भ से जन्म लेने के पश्चात, वो योगी परकाया प्रवेश नामक सिद्धि से किसी और शरीर में, कुछ ही समय के लिए
प्रवेश करता है।

लैकिन यहाँ पर ऐसे योगी की बात नहीं होगी, इसलिए अब दूसरा प्रकार बतलाता हूँ।
२  दुसरे प्रकार का परकाया प्रवेश ...
इसमें योगी किसी स्थूल देहि माता के गर्भ से जन्म नहीं लेता है। वो परकाया प्रवेश से किसी और का शरीर धारण करता है।

इस दूसरे प्रकार मैं/या तो उस स्थूल शरीर का जन्म जिसको वो योगी धारण करता है, उसी योगी के लिए ही होता है, या वो परकाया प्रवेश से
आने वाला योगी, उस स्थूल शरीर के निवासी से बात करके, एक समझौता करके, एक निश्चित समय पर, एक निश्चित स्थान पर, और एक
निश्चित समय सीमा के भीतर, उस स्थूल शरीर मैं परकाया प्रवेश के मार्ग से आकर, उस स्थूल शरीर को धारण करता है। और इस प्रक्रिया में,
उस स्थूल शरीर का मूल निवासी, अपने शरीर को ही दान मैं दे देता है, उस परकाया प्रवेशी को।

और क्यूंकि ऐसा योगी जन्म और मृत्यु के चक्र के बाहर से लौटाया जाता है, इसलिए वो जन्मा हुआ प्रतीत होता हुआ भी, वास्तव मैं जल्म
मरण के चक्र से परे ही होता है। वो एक स्थूल शरीर में बैठा हुआ भी, जन्मा सा प्रतीत होता हुआ भी, वास्तव मैं अजन्मा ही होता है।

वो योगी ऐसा होता है, जो जन्म मरण के चक्र से बाहर होता हुआ भी, कुछ कार्य करने हैतु, किसी लोक के एक स्थूल्न देह मैं लौटाया जाता है।

ऐसे लौटाए गए योगी की प्रेरणा मैं, कोई भी देवी देवता हो सकता है, या कई सारे देवी देवता भी हो सकते हैं । उसकी प्रेरणा मैं, कई सिद्ध
ऋषिगण जो उसके पूर्व जन्मों में उसके पिता माता गुरु आदि थे, वो भी हो सकते हैं। और ऐसे योगी की प्रेरणा में, माँ प्रकृति के कुछ तत्त्व या
सारे तत्त्वों की दिव्यताएँ भी हो सकती है। और कुछ उत्कृष्ट योगी, जो परकाया प्रवेश के मार्ग से लौटाए जाते हैं, उनकी प्रेरणा ब्रह्म या प्रकृति
या दोनों भी हो सकते हैं।

लेकिन इन सब बिन्दुओं के साथ साथ, उस योगी की प्रेरणा मैं, प्रजापति की हिरण्यगर्भात्मक अभिव्यक्ति अवश्य होगी, अर्थात, उसकी प्रेरणा
में हिरण्यगर् ब्रह्म होंगे ही।
परकाया प्रवेश की देवी का वर्णन ... परकाया प्रवेश के समय शरीर की अवस्था ...

ये देवी सुनहरे रंग की हैं, उनके वस्त्र लाल रंग की साडी जैसे हैं, जिसमें से हीरे जैसा प्रकाश बाहर को निकल रहा होता है। ये हीरे जैसा प्रकाश
दर्शाता है, की उन्हौंने सर्वसम चतुर्मुखा प्रजापति के सर्वसम-तत्त्व को धारण किया हुआ है।

और इन देवी के शरीर के नीचे के वस्त्रों से, तीन प्रकाश निकल रहे होते है, जो लाल, नीले और श्वैत वर्णों के होते है, और जो दर्शाता हैं की इन
देवी ने त्रिगुण को ही धारण किया हुआ है। इसका ये भी अर्थ हुआ, कि ये देवी त्रिगुणात्मिका हैं।

उनका सर ऊपर से उठा हुआ, नोकीला सा होता है, जैसे उन्होंने कोई सुनेहरा मुकुट धारण किया हुआ है, और जो उनकी उठी हुई चेतना को
दर्शाता है।

इन्ही देवी को वैदिक और योग मनीषियों ने, ओ३म्‌ का प्रथम बीज, अकार भी कहा है, और इनको पज्च सरस्वति में, सावित्री सरस्वती के
नाम से भी पुकारा गया है।

यही माँ सुभद्रा भी हैं (अर्थात भगवान जगन्नाथ की अनुजा) और यही देवी एकाम ईश्वरी, अम्बा, अम्बिका अदि भी कहलाती है [

इन्ही का एक स्वरूप माँ बगलामुखी (अर्थात माँ पीताम्बरा, माँ ब्रह्मास्त्र विद्या) भी है, जो 209 से ही भारत के पूर्वी दिशा के क्षेत्रों में बैठी हुई हैं
प्‌

इस ब्रह्मास्त्र विद्या के लघु रूप के बारे में किसी और अध्याय में बतलाऊँगा, क्यूंकि वैदिक परंपरा मैं, इसका वास्तवकि स्वरूप कभी भी
सार्वजनिक नहीं किया जाता है.
 कृष्णमूर्ति में बुद्ध के अवतरण का असफल प्रयोग:

बुद्ध ने तीन शरीरों को जीने की शक्ति दी है और मैत्रेय के जन्म का समय भी बताया है। इसके लिए कृष्णमूर्ति को तैयार करने के लिए उन पर एक प्रयोग किया गया, लेकिन इस प्रक्रिया के दौरान नित्यानंद की मृत्यु हो गई। यह प्रयोग अनूठा और आत्मसात करने में कठिन था। नित्यानंद के तीन शरीरों को मैत्रेय से अलग करने का प्रयास किया गया, लेकिन दोनों ही विफल रहे। कृष्णमूर्ति पर भी उनके तीन शरीरों को हटाकर उनकी जगह अन्य लगाने का प्रयास किया गया, लेकिन वह भी विफल रहा। जॉर्ज अरुंडेल और ब्लावात्स्की उन लोगों में से थे, जिन्हें गुप्तविद्या की गहरी समझ थी, उनके बाद एनी बेसेंट और लीडबीटर थे। इन व्यक्तियों को गुप्तविद्या की गहरी समझ थी, जो आज की दुनिया में दुर्लभ है। ब्लावात्स्की, एनी बेसेंट और लीडबीटर जैसे कुछ लोगों को दूसरों की तुलना में गुप्तविद्या की गहरी समझ थी। जो व्यक्ति तीनों को आत्मसात कर लेता है, वह बुद्ध का पुनर्जन्म होगा, बुद्ध का शरीर लेगा और सीधे उनके कार्य में शामिल होगा। व्यक्ति की आत्मा वापस नहीं आएगी।
हर कोई बुद्ध के समान चेतना की स्थिति में नहीं हो सकता, क्योंकि यह तीनों शरीरों को आत्मसात करने के लिए आवश्यक है। असफल प्रयास कठिनाइयों के कारण था, लेकिन प्रयास जारी है। कुछ गूढ़ मंडल अब एक बच्चे के लिए शरीर प्राप्त करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन प्रचार ने नुकसान पहुंचाया है। चुनौतियों के बावजूद, प्रयास जारी है।
एक बौद्ध भिक्षु कृष्णमूर्ति के साथ प्रयोग, गुप्त विज्ञान के इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना थी। प्रचार का उद्देश्य बुद्ध को पहचानना और बुद्ध के समय जीवित लोगों की स्मृति को जगाना था। हालाँकि, प्रचार घातक साबित हुआ, क्योंकि कृष्णमूर्ति, एक शर्मीले और आरक्षित व्यक्ति थे, उन्होंने अपने शरीर को छोड़ने से इनकार कर दिया, जिससे अन्य शरीरों के लिए जगह नहीं बची। इसके परिणामस्वरूप यह घटना नहीं हुई।
इस सदी में गुप्त विज्ञान को एक बड़ी विफलता मिली है, क्योंकि तिब्बत को छोड़कर कहीं भी इतना बड़ा प्रयोग कभी नहीं किया गया था। तिब्बत में यह प्रयोग लंबे समय से चल रहा है और कई आत्माएं दूसरे शरीरों में फिर से काम कर रही हैं।

वक्ता ने इस बात पर जोर दिया कि उनके कथन में कोई विरोधाभास नहीं है और अगर कोई विरोधाभास है भी तो उसे दूसरे तरीके से सुलझाया जाएगा, जिससे विरोधाभास की संभावना बनी रहे। यह घटना इस बात की याद दिलाती है कि गुप्त विज्ञान हमेशा अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सफल नहीं रहा है।
परकाया प्रवेश क्या होता है?
किसी व्यक्ति की आत्मा का किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में प्रवेश करना या कराना ही 'पर-काया प्रवेश' कहलाता है। इस संबंध में नाथ सम्प्रदाय के आदि गुरु मुनिराज 'मछन्दरनाथ' के विषय में भी कहा जाता है कि उन्हें परकाया प्रवेश की सिद्धि प्राप्त थी, सूक्ष्म शरीर से वे अपनी इच्छानुसार गमनागमन विभिन्न शरीरों में करते थे।

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है.सिर्फ काल्पनिक कहानी समझ कर ही पढ़े .

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