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सिद्धाश्रम साधक परिवार की रहस्यमय गुरु साधनाये-6

 

1--- दिव्य गुरु कल्प साधना







सदगुरुदेव ने साधक को अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त करने के लिए इस साधना को पूरा करने के महत्व पर बल दिया। यह साधना सिद्धाश्रम के महान योगियों के बीच लोकप्रिय है, क्योंकि यह शरीर को बुढ़ापे और रोग से मुक्त करती है, इसे दिव्य बनाती है और साधक को शुद्धता और युवापन के साथ साधना की ऊंचाइयों की ओर बढ़ने देती है। अन्य साधनाओं के विपरीत जिनमें बाहरी सामग्री की आवश्यकता होती है, इस साधना के लिए सीमित तरीके से केवल निर्धारित क्रम की आवश्यकता होती है। साधक अभूतपूर्व आश्चर्य का अनुभव करता है, सभी रोगों से मुक्त होता है, और पूर्ण कुंडलिनी चक्रों के जागरण के साथ, सिद्धाश्रम का मार्ग प्रशस्त होता है। यह साधना केवल पढ़ने के लिए नहीं बल्कि इसे आजमाने के लिए है। शुरू करने के लिए, रविवार को शुरू करें, ब्रह्म मुहूर्त में उठें, स्नान करें, सफेद कपड़े पहनें, साधना कक्ष में एक सफेद आसन पर बैठें, मेज पर सदगुरुदेव का चित्र रखें, एक यंत्र बनाएं और उस पर घी का दीपक रखें।शुद्धिकरण के पश्चात गुरु ध्यान करे

 

 अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानांजन शलाकया

चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरूवै नमः.



फिर निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए गुरु चित्र को गंगा जल से स्नान करवाएं

ॐनिं निखिलेश्वराय स्नानं समर्पयामी

फिर उन्हें साफ़ वस्त्र से पोछ कर उन्हें आसन रूप में पुष्प समर्पित करे. 

ॐनिं निखिलेश्वराय पुष्पं समर्पयामी 

फिर सुगन्धित धूप जलाये.

ॐनिं निखिलेश्वराय धूपं आघ्रापयामि 

तत्पश्चात गुरुचित्र के सामने ढेरी पर स्थापित गौघृत का दीप प्रज्वातिल करें .

ॐनिं निखिलेश्वराय दीपम्  दर्शयामी 

आखिर में खीर का नैवेद्य श्री सदगुरुदेव के चरणों में अर्पित करे.

ॐनिं निखिलेश्वराय नैवेद्यं निवेदयामी

 प्रयोग के लिए पूर्ण सिद्धासन या पद्मासन में बैठकर १२० माला १ दिन में अथवा २१-२१ माला ७ दिनों तक संपन्न करे. ये मंत्र जप स्फटिक माला से होना चाहिए और ये माला पहले कही प्रयोग न की हुयी हो. परन्तु यदि इसे अनुष्ठान रूप में संपन्न करना हो तो सवा लाख मंत्र जप होना चाहिए और मूल दीपक के बायीं और तिल के तेल का दीपक अखंड होना चाहिए. दृष्टि दीपक की लौ पर होनी चाहिए,

मंत्र- ॐऐं ह्रीं श्रीं कुल कुण्डलिनी जाग्रय स्फोटय श्रीं ह्रीं ऐं फट्.

 OM AING HREENG SHREENG KUL KUNDALINI JAAGRAY SFOTAY SHREENG HREENG AING PHAT

2-

SHIV SHAKTI SAMANVIT GURU SADHNA

ब्रह्मा और ब्रह्माण्ड दो तत्वों से मिलकर बने हैं, पुरुष और प्रकृति। शिव पुरुष तत्व हैं और प्रकृति स्त्री तत्व है। ये दोनों तत्व ब्रह्माण्ड की गतिशील और क्रियाशील प्रकृति का आधार हैं। इन दोनों का सम्मिलित रूप ब्रह्मा है, जबकि मिश्रित रूप अर्धनारीश्वर है।


जीवन में, विशेषकर तंत्र में गुरु का महत्व बहुत अधिक है। गुरुसाक्षात् परब्रह्म से तात्पर्य गुरु से है, जो परब्रह्म का प्रत्यक्ष रूप है, जो आदि शिव और शक्ति का सम्मिलित रूप है। गुरु भाव, जो एक स्त्री तत्व है, प्रबल है, जिसमें मातृत्व, स्नेह, करुणा, प्रेम और ज्ञान जैसे स्वाभाविक भाव समाहित हैं। ये भाव साधक के कल्याण के लिए कार्य करते हैं, जबकि पुरुष होने के कारण इनमें वीरता, बहादुरी, साहस, निर्भयता, बुद्धि और विवेक जैसे गुण होते हैं।


साधक के साधना जीवन में इष्ट से संबंधित विभिन्न प्रक्रियाएं संपन्न होती हैं, इन सभी प्रक्रियाओं का मूल गुरु साधना है। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि गुरु साधना ब्रह्म की साधना है, तथा सभी सजीव और निर्जीव वस्तुओं की रचना पुरुष और प्रकृति के मिलन से हुई है। देवी-देवता ब्रह्म के ही खंडित रूप हैं, जो आदि शिव (बाह्य रूप) और शिव (आंतरिक रूप) से उत्पन्न हुए हैं। गुरु साधना के विभिन्न प्रकार और उपप्रकार हैं, तथा तंत्र में इसका प्रचलन विभिन्न प्रकार की सिद्धियों को प्राप्त करने और सद्गुरु से आशीर्वाद और कृपा प्राप्त करने के लिए है।


गुरु साधना का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि यह वास्तव में ब्रह्म साधना है, जो साधक के आध्यात्मिक जीवन से संबंधित है।

साधना एक साधक के जीवन के लिए एक महत्वपूर्ण अभ्यास है, क्योंकि इसमें गुरु तत्व या ब्रह्म तत्व, शिव और शक्ति के तत्वों का संयोजन होता है। साधना के इस रूप को भौतिक और आध्यात्मिक दोनों पहलुओं में गतिशीलता और सफलता के लिए सर्वोच्च सौभाग्य माना जाता है। इस साधना के लाभों में भौतिक प्रगति, शांतिपूर्ण वातावरण, व्यापार और अभ्यास में दक्षता, सौभाग्य, पिछले पापों का नाश और भविष्य की साधनाओं के लिए भावनात्मक आधार शामिल हैं।


साधना अवधि के दौरान, साधक अपने पिछले जीवन से संबंधित दृश्यों को देखता है, पिछले पापों का नाश करता है और उच्चतम साधनाओं के लिए भावनात्मक आधार प्रदान करता है। साधक ब्रह्मांडीय शिव और शक्ति रूपी रहस्यों का ज्ञान भी प्राप्त करता है, गुरु से आशीर्वाद प्राप्त करता है और अपनी भावनात्मक स्थिति में गुप्त स्थानों का अनुभव करता है। वे नींद या सपने में सद्गुरु और विभिन्न सिद्धों की संगति का भी अनुभव कर सकते हैं। कुल मिलाकर, साधना एक साधक के जीवन का एक महत्वपूर्ण पहलू है।

साधक इस दुर्लभ प्रयोग को किसी भी गुरुवार या रविवार से शुरू कर सकता है. समय दिन या रात का कोई भी रहे लेकिन रोज एक ही समय पर साधना करनी चाहिए.

वैसे इस साधना को शुरू करने के लिए उत्तम दिवस है भाद्रपद पूर्णिमा जिसको शिवशक्ति स्वरुप गुरु सिद्धि दिवस कहा जाता है.

साधक को स्नान आदि से निवृत हो कर उत्तर या पूर्व दिशा की तरफ मुख कर बैठना चाहिए. साधक के वस्त्र तथा आसान सफ़ेद या पीले रंग के हो.

अपने सामने गुरुचित्र को स्थापित कर गुरुपूजन सम्प्पन करे

इसके बाद साधक निम्न मंत्र की ५१ माला मंत्र जाप करे. मंत्र सहज होने के कारण ५१ माला मंत्र जाप करना मुश्किल नहीं है. मन्त्र जाप के लिए साधक गुरु माला, गुरु रहस्य माला, स्फटिक माला या रुद्राक्ष माला उपयोग में ला सकता है.

ॐ क्लीं गुं फट्

(om kleem gum phat)

इसके बाद साधक जप का समर्पन सदगुरुदेव के चरणो मे कर दे. साधक को यह क्रम ५ दिन करे. 

3-  निखिल तत्पुरुष साधना 

14 दिन की साधना पूरी करने के बाद साधक का सदगुरुदेव के प्रति प्रेम और भक्ति प्रबल हो जाती है। इसमें गुरूवार की सुबह गुरु पूजा, गुरु चिंतन में लीन रहना और रात्रि में 14 दिन की साधना शामिल है। साधक को उत्तर दिशा की ओर मुख करके सफेद वस्त्र और आसन धारण करना चाहिए, सफेद कपड़े पर सदगुरुदेव की तस्वीर रखनी चाहिए और गुरु मंत्र का जाप करना चाहिए। पूजा के बाद साधना में सफलता के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। इसके बाद साधक को स्फटिक माला से मंत्र की 21 माला का जाप करना चाहिए। यह प्रयोग साधक को साधना के क्षेत्र में कीर्तिमान स्थापित करने में सक्षम बनाता है।

ॐ निं तत्पुरुषाय जाग्रतम क्लीं निखिलेश्वराय नमः

Om Nim Tatpurushaay Jaagratam kleem Nikhileshwaraay Namah

साधना समाप्ति पर साधक माला को धारण करे या फिर पूजा स्थान मे रख दे. इस माला को विसर्जित नहीं करना है.

4-

निखिल तत्व सायुज्य भगवती राज राजेश्वरी साधना

राज राजेश्वरी दुर्लभं जायते नरः ll

पूर्णत्वं श्रेष्ट सिद्धित्वं न अन्यत्र वदेत् क्वचित ll

पूर्व जन्म कृत दोष इह जन्मनि यद् भवेत्  l

सर्व पाप विमुच्यन्ते चैतन्य शुद्ध साधनवै ll

राज राजेश्वरी कुण्डल्योत्थान एव च l

देह प्राण स चैतन्य शुद्ध ब्रह्म समो नरः ll

अनंगोसम सौन्दर्य यौवनं तेजस वदेत् l

सम्मोहनम् कामत्वं प्राप्यते राज दीक्षतं ll

सहस्रार त्व जाग्रत्वं अमृतो पान त्वं सदः l

राज राजेश्वरी साधना को जीवन की सर्वोच्च साधना माना जाता है, क्योंकि यह सभी तत्वों को एक साथ मिलाकर पारद विज्ञान के दिव्य रहस्यों का ज्ञान कराती है। यह कुण्डलिनी को एक ही झटके में मूलाधार से सहस्रार तक ले जाती है, तथा भगवत्पाद सद्गुरुदेव परमहंस निखिलेश्वरानंद द्वारा निर्मित है। मंत्र जाप से साधक को अप्राप्य कामनाओं की पूर्ति होती है। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र इस बात पर बल देते हैं कि कुण्डलिनी जागरण से ही जीवन का उत्थान संभव है, जो सामान्य साधक के लिए संभव नहीं है। हालांकि, जो लोग अनंग की तरह सुंदर बनना चाहते हैं तथा रति की तरह अपार सौंदर्य के स्वामी बनना चाहते हैं, उनके लिए राज राजेश्वरी साधना करना अनुकूल है। जिस प्रकार प्रचंड अग्नि एक क्षण में पापों को नष्ट कर देती है, उसी प्रकार यह साधना एक क्षण में पापों को नष्ट कर देती है। यह साधना तंत्र का आधार है, तथा इसके पश्चात कुछ भी अप्राप्य नहीं रह जाता। साधक को सहस्रार का आशीर्वाद प्राप्त होता है, अमृत धारण करने की शक्ति प्राप्त होती है, जो ओझाओं में परिवर्तित होकर उसे निर्जरा शरीर तथा पूर्ण समृद्धि प्राप्त करने में सक्षम बनाती है। इस साधना को तंत्र का आधार माना जाता है तथा इसे सौंदर्य और समृद्धि प्राप्त करने का सर्वोत्तम तरीका माना जाता है।

किसी भी शुक्ल पक्ष की पंचमी को इस साधना का प्रारंभ किया जाता है , साधना के लिए गुरु यन्त्र,चित्र और श्री यन्त्र की आवशयकता होती है, श्वेत वस्त्र पहनकर मध्य रात्रि में इस साधना का प्रारम्भ करेपूर्ण भगवती राज राजेश्वरी की साधना में सफलता हेतु ये साधना की जा रही है और अपनी सम्पूर्ण कलाओं के साथ गुरु तत्व युक्त होकर वे मेरे जीवन में उतरे यही आशीर्वाद आप सदगुरुदेव से मांगे श्वेत वस्त्र, आसन, श्वेत पुष्प और खीर से भगवती और सदगुरुदेव का पूजन करे lइन दोनों यंत्रों का पूर्ण पूजन शास्त्रोक्त पद्धति से पंचोपचार करने के बाद स्फटिक माला से सबसे पहले निम्न गुरु तत्व मंत्र की ११ माला जप करें और उसके बाद राज राजेश्वरी मन्त्र की १०८ माला करे,फिर पुनः उपरोक्त गुरु तत्व मन्त्र की ११ माला जप करे l

गुरु तत्व मन्त्र-

 

ॐ गुरु शिवायै शिव गुरुवर्यै नमः       

 

दिव्य भगवती राजराजेश्वरी मंत्र-

 

ऐं ह्रीं श्रीं

 

AING  HREENG  SHREENG

 

दीपक शुद्ध घी का होना चाहिए और इस साधना क्रम को ७ दिनों तक संपन्न करना हैlइस साधना के प्रभाव से स्फटिक माला विजय माला में परिवर्तित हो जाती है lइस माला को पूरे जीवन भर धारण करना हैlराज राजेश्वरी मंत्र में  की ध्वनि आयेगीये एक अद्विय्तीय साधना है ,जिसके द्वारा सम्पूर्ण जीवन को जगमगाहट से भरा जा सकता हैl

डिसक्लेमर

'इस लेख में दी गई जानकारी/सामग्री/गणना की प्रामाणिकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। सूचना के विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/धार्मिक मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संकलित करके यह सूचना आप तक प्रेषित की गई हैं। हमारा उद्देश्य सिर्फ सूचना पहुंचाना है.सिर्फ काल्पनिक कहानी समझ कर ही पढ़े .

 


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